तिरस्कार में पुरस्कार
तिरस्कार में पुरस्कार
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जग में ऐसे कई महान
तिरस्कृत हुए बेईमानों से
श्रम किएआस अरमानों से
पंचम फहराया व्यवहारो से
पुरस्कृत होते तिरस्कारों से
कमी नहीं जग बेईमानों की
कोई कमी नहीं तिरस्कारो की
सौतेली मां छोड़ती संतानों को
पनाह नहीं मिलती गरीबों को
बंदर डॉगी दे रहे चना खाना
मांगे भूखे नहीं चना चबाना
भरे पेट सब खाने को पूछते
भूखे पेट घूम घूम मांगे दाना
मजाक उड़ाते इन भूखों पर
चोर उचक्के पागल दीवाना
मान पुकार मारते रहते ताना
इन्हें तनिक ये परवाह नहीं
दरिद्रता कोई मजाक नहीं
छिपी नर नारायण दरिद्रों में
समझ रहे सर्व दुखों को
देख अनजान में पहचान नहीं
खिलता कमल कीचड़ में ही
देख जगत अपनाते इसे पर
भूल गए उन कांटों की डाली
जिस पर खिले फूल मतवाली
सड़े गले गादों खादो को फेंक
क्यारी कृषक उगाते आहारी
भूल गए उन कनक दाने पानी
जिन पर टिकी प्राण शानो शौकत
गोबर गाद खाद अवशिष्ट है
पर यही उपज दाने में उचित
काया तन पुरस्कार देती जग
सम्मान इनका ऑर्गेनिक खाद
सबल करते तनु मनु का ऑर्गन
रस रसायन रसायनिक खाद
देते स्वाद भोजन बेमिशाल
तिरस्कृत होकर भी देते सबको
निरोगी काया मनमौजी माया
जीवन श्वांस पुरस्कार से जन
होते निहाल भूलकर भी ये
नहीं किसी को करते तिरस्कार
भूखी ज्ञान तड़प रही अवसर को
निजज्ञान से गौरवान्वित कर देश
अभिमान से गर्व करते इन पर
पुरस्कार सम्मानित हो तिरस्कृत
हे ! जन भारत ! जय भारती
छोड़ तिरक्कार अपना सम्मान
यह तो सबका निज अधिकार
तभी तो भारत का अभिमान
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण