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30 Jan 2024 · 1 min read

तिमिर है घनेरा

तिमिर है घनेरा

दिशाओं दशों में तिमिर है घनेरा,
उजालों के साधन जुटाना पड़ेगा।
पुराने चिरागों की लौ नहीं काफी,
नये दीप ढेरों जलाना पड़ेगा।

है माला पुरानी हुआ जीर्ण धागा,
सभी मनके फिर से गुहाना पड़ेगा।
पिता माता बेटा बहन भाई पत्नी,
तिजारत के जैसे हुए रिश्ते सारे ।

न संध्या की पूजा,न ईश्वर का वन्दन,
मशीनों के मानिंद, जिये जा रहे हैं।
हैं भूले कन्हैया का माखन चुराना,
व रघुबर का भीलनी चखे बेर खाना ।

नहीं होती घर में नारायण की बातें ।
गुजरती हैं गपसप में मानव की रातें ।

चलो फिर पुनः एक कोशिश करें हम,
प्रखर दीप घर के मुहारे धरे हम।

पुराने वसूलों की देकर दुहाई,
सिरे से दुबारा सजाना पड़ेगा।

कहाँ हम खड़े हैं नई सभ्यता में,
पुनः भारती रीति लाना पड़ेगा।

Language: Hindi
163 Views
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