तितली भी मैं
तितली थी मैं
तुम्हारे लिए ही तो उड उड़कर आती थी
तुम खुश होते थे मुझे देखकर
तुम्हारी इस खुशी पर बलि जाती थी ।
पर तुम्हारे डर ने
मुझे मुट्ठी में कसकर बाँध लिया
बहुत कसमसाई तड़पी मैं
पर तुम वो बेचैनी समझ न सके
और मिट गई मैं,
काश तुम समझ पाते
मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम
तो ये डर कभी
हम दोनों को खत्म न कर पाता।