“तिकड़मी दौर”
“तिकड़मी दौर”
प्रेम, प्रकृति, संवेदनाओं से दूर
इस उपभोक्तावादी दौर में
विद्या से विनय नहीं
सिर्फ चतुराई फलित हो रही,
सारे संस्कार और नैतिकताएँ
स्वार्थ के अन्धेरे में खो रही।
“तिकड़मी दौर”
प्रेम, प्रकृति, संवेदनाओं से दूर
इस उपभोक्तावादी दौर में
विद्या से विनय नहीं
सिर्फ चतुराई फलित हो रही,
सारे संस्कार और नैतिकताएँ
स्वार्थ के अन्धेरे में खो रही।