ता-उम्र गुजरेगी मिरी उनके इंतज़ार में क्या?
ता-उम्र गुजरेगी मिरी उनके इंतज़ार में क्या?
केवल दर्द हीं नसीब होता है प्यार में क्या?
थक गए हैं हम, अपना हाल-ए-दिल बताते बताते,
उनके बग़ैर हयात बियाबां में क्या, गुलज़ार में क्या?
उनके दिल में हीं होगा अब ठिकाना मिरा, यारों,
रखा भी है इस कंक्रीट से बने घर-बार में क्या!
ये मिरी रातें भी, अब शब-सोख़्ता हो गई हैं,
अपनी नींद भी लूं मैं उनसे उधार में क्या?
नैरंग-ए-मोहब्बत का भी जिस पर असर न हुआ,
मज़ा ऐसे बे-नियाज़ाना शख़्स के दीदार में क्या?
ग़म-ए-उल्फ़त मुझे हर लम्हें में कई दफा जलाती है,
बचा नहीं कोई मुझे चाहने वाला इस संसार में क्या?
-©®Shikha