ताल्लुकात
ताल्लुकात
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नहीं करना चाहता है वह
सामाजिक रिश्तों में देकर
वक़्त जाया अपना
देकर तवज्जो सामाजिक रिश्तों पर
फुरसत नहीं है
सियासी ताल्लुकात बनाने से ……………….
अपनी सोच के किसी कोने में
दिखाई देने लगा है इसमें मौका उसे
सुधारने का सियासी और माली हालत
नहीं होना चाहता दूर इक पल भी
सियासी शख़्स की नज़रों से
बनाना चाहता है पहचान अपनी
बनाकर अपने करीबी ताल्लुकात
उस सियासी शख्शियत से………………….
तय करना चाहता है
लोगों के कई मसलों को सुलझाने में
अपनी भागीदारी
बेशकीमती मानता है वह वक़्त को
सियासी ताल्लुकात बनाए रखने के लिए
गफ़लत में है गुजरते वक़्त के साथ
सामाजिक रिश्ते तो कोई शक़्ल
इख़्तियार कर ही लेंगे
बनते ही उसके सियासी रसूख से…………..
बेख़बर है न रहने पर
सियासी शख़्स का सियासी ओहदा
वह अपने हालात से………………………….
— सुधीर केवलिया