तारीकियों में गिरफ्तार हुए
तारीकियों में गिरफ्तार हुए
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फ़िक्र ज़िंदगी में लाचार हुए
चारों तरफ हैं बन्द द्वार हुए
उजालों से बहुत दूर हो कर
तारीकियों में गिरफ्तार हुए
रहगुजर तेरी फ़सादों भरी
अपनों से ही ख़बरदार हुए
जीवन कोरा कागज ही रहा
रंग सारे बे असरदार हुए
चाँदनी रात थी तारों भरी
चाँद तारे सब बेकार हुए
गुलशन गुलों से है हराभरा
स्वप्न दिल के तार तार हुए
ना हमसाये ना ही हमदर्दी
हम तो उनके ताबेदार हुए
छायी स्याही बदरंग है यहाँ
द्वार उनके तो रंगदार हुए
सुखविंद्र उल्फतें हैं मर गई
खुशियों के बन्द बाजार हुए
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)