ताया जी हमारे
***** ताया जी हमारे ******
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ताया जी हमारे बहुत प्यारे,
छोड़ कर हमें क्यों स्वर्ग सिधारे।
किस नगरी में ठिकाना बनाया,
बिना बताए किधर हो पधारे।
अंगुली पकड़ चलना सिखाया,
रातों को दिखाए चाँद सितारे।
चौड़ी छाती तन-बदन गठीला,
दुखभरी घड़ी में सभी के सहारे।
नाम दलजीत दिल के भी जीत,
कुटुंब के बिगड़ते हालात सुधारे।
बड़े होने का फर्ज खूब निभाया,
निज कामनाओं को कर किनारे।
बचपन की हमें याद अभी बातें,
मीठी मीठी बातों के वारे न्यारे।
सीने से लगा कर लाड़ लड़ाया,
कंधे बैठा कर घुमाये सारे द्वारे।
संसारिक यात्रा कर के सम्पूर्ण,
कौनसे प्रदेश में तुम हो विसारे।
मनसीरत ने तो दिल में बैठाया,
तस्वीर तुम्हारी दिल के चुबारे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)