तात
बच्चों के हित अपनी खुशी लुटाए हैं
स्वेद-कणों को चुन-चुन नीड़ बनाए हैं
पहर-दोपहर भूखे तन रहकर बापू
सर्दी,गर्मी, पावस दुख सहकर बापू
रख पगड़ी कर्जे का भार उठाए हैं
बच्चों के हित अपनी खुशी लुटाए हैं।
फूस-पलानी बीच न हिम्मत हारे हैं
हल-बैलों सँग श्रम से सदा सँवारे हैं
अपना चर्म तपाकर हमें सजाए हैं
बच्चों के हित अपनी खुशी लुटाए हैं।
बाबू जी के बल को हमने भुला दिया
मिलते ही मनमीत पिता को रुला दिया
चौथेपन हम कितने फर्ज़ निभाए हैं
बच्चों के हित बापू खुशी लुटाए हैं।।
‘मनमीत’