ताजमहल के अहाते में प्रेमी जोड़े ने एक दूसरे का गला रेता
जोश में न तो होश खोना चाहिए न ही प्रेम को खालिश जोश के हवाले कर देना चाहिए!
जानता हूँ, प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है! यदि प्यार सच्चा है तब! नहीं तो फरेबी मुहब्बत अथवा प्रपंची प्रेम के किस्से भी कम नहीं सामने आ रहे।
प्रेम-प्रतीक ताजमहल परिसर में एक युगल प्रेमी ने एक दूसरे का गला आपसी सहमति से ब्लेड से रेत दिया। खून से लथपथ जोड़े को ताज-प्रशासन ने आगरे के किसी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। परसों घटना के समय ही उनकी स्थिति नाजुक थी, पता नहीं उनकी हालत अभी कैसी है?
प्रेमी ने जो घटनोत्तर बयान दिया उसके मुताबिक दोनों के घर वालों को उनका यह सम्बन्ध मंजूर नहीं था जबकि ये शादी करना चाहते हैं। लड़का हिन्दू है और लड़की मुस्लिम।
25 के आसपास की उम्र के ये बेरोजगार प्रेमी युगल अपने परिजनों की बेरुखी से तंग हो गये एवं इस हद तक आ गये। शायद, जान बचने के बाद ‘कामचलाऊ’ चंगा होने पर्वपहले ये हत्या की कोशिश के जुर्म में हवालात जाएं, एवं छूटने के बाद शादी की हरी झंडी अपने अभिभावकों से पा जाएँ। इस लोमहर्षक वाकये के बाद इनके मन की मुराद पूरी होना एक अलग खूनी-प्रेम का इतिहास बना जाएगा!
दरअसल, समाज का ताना-बाना इक्कीसवीं सदी में भी इतना संकीर्ण है कि जाति एवं धर्म के पार के ऐसे सम्बन्धों घटित होने पर नाते-रिश्ते, गाँव-समाज में प्रभावित परिवारों का स्वाभाविक रूप से रहना मुश्किल हो जाता है। घर वाले ऐसे सम्बन्धों से सहमत होने के बावजूद इन्हें आकार लेने को टालना ही चाहेंगे। प्रगतिशील से प्रगतिशील, जाति धर्म से मुंह बिचकाने वाले लोग तक ऐसे सिचुएशन में प्रेम-विरोधी आचरण कर बैठ सकते हैं! आखिर, आ बैल मुझे मार कौन पसंद करेगा?
मेरे ख्याल में प्रेमी जोड़ों में से कम से कम प्रेमिका का कोई अपना ठोस आर्थिक आधार तो होना ही चाहिए, जिससे वह घर-परिवार एवं बाद को प्रेमी के hostile होने पर भी अपना स्वतंत्र जीवन जी सके। हमारे समाज में अभी भी एकल युवा स्त्री का जीना आसान नहीं है। फिर भी, आर्थिक रूप से उसके स्वनिर्भर होने पर समाज से काफी कुछ लड़ने का आधार मिल जाता है।
अतः मेरा तो सुझाव होगा, लड़कियो! किसी के प्रेम में बेतरह पड़ने से पहले ठहरो, प्रेम की बुनियाद मजबूत करने से पहले अपनी जमीन मजबूत करो, अपने पैर पर खड़ा हो लो।