तवायफ़
कितनी बच्चियों की इज्ज़त बचा रखी है।
एक तवायफ ने जो एक सेज सजा रखी है।
कितनों को रोकती है , पाप ये करने से
खुद पापिन की तख्ती माथे पे लगा रखी है।
एक बार लुटे या सौ बार लुटे ये मेरी देह
क्या फर्क है? ये बात दिल को समझा रखी है।
भटके हुए कुछ मर्द , तलवे तेरे चाटते हैं रोज
घर की नारी तो जिसने गुलाम बना रखी है।
बार बार लुटा कर तू खुद को एक वहशी से
किसी अबला की लाज ,तूने बचा रखी है।
छोटी छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते
कितनी कलंकित नामर्दो ने दुनिया बना रखी है।
नमन तुम्हे ऐ तवायफ,एक देवी है तू सच में
तेरे आंगन की मिट्टी दुर्गा मूर्त्ति में सजा रखी है।
नमन??
सुरिंदर कौर