तलाश
तन्हाइयों में अक्सर खो जाना चाहता हूं ,
ख़ुदी को भुला बेख़बर हो जाना चाहता हूं ,
मेरी एहसास-ए-तन्हाई मुझे कहीं दूर ले जाती है ,
जो भरी महफिल में भी मुझको अकेला सा पाती हैं ,
तसव्वुर की गलियों में अब भटकता रहता हूं ,
ज़ेहन पे छाए हैं जो यादों के साए , मिटाने की नाक़ाम कोशिश करता रहता हूं ,
दिल के जख़्म जो अब तक हरे हैं , उनका मुदावा ढूंढता फिर रहा हूं ,
मेरे जख़्मों पर जो लगा सके मरहम उस चारागर की तलाश में जी रहा हूं ,