तलाश सच्चाई का
सुन ले हे इंसान जरा
मत छोड़ कभी विश्वास
खुद में है अच्छाई कितनी
तू नित्य कर तलाश
सुंदर होगा मन तेरा
जग निर्मल हो जाएगा
तेरी सोच बदल जाए तो
युग पूरा बदल जाएगा
तुझे तलाश नहीं रब की
तू उलझा है पैमानों में
उसके चक्कर में फिर रहा
जिसे बंद रखना है तहखानों में
ढूंढ शांति मन की तू
जब कहीं मिल जाएगा
तेरे कारण हे मानव
ए गुलशन फिर खिल जाएगा
✍? पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
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