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9 Feb 2021 · 1 min read

तलाश मुझ को करेगी ये ज़िन्दगी इक दिन।

ग़ज़ल

मिरे फ़िराक़ में रोएगी हर घङी इक दिन।
तलाश मुझको करेगी ये ज़िन्दगी इक दिन।

तुझे मनाता रहूँगा मैं हद्दे- आख़िर तक।
ज़रूर ख़त्म तिरी होगी बरहमी इक दिन।

अभी वफ़ाओं का मेरी उसे नहीं एहसास।
फिर आ के रोएगा तुरबत पे वो मिरी इक दिन।

जो ज़ख़्म दे के मिरे दिल को मुस्कुराता है।
करेगा मुझ पे करम की नज़र वही इक दिन।

इसी उमीद पे ढोता हूँ बोझ मैं ग़म का।
नसीब होगी यक़ीनन मुझे ख़ुशी इक दिन।

तमाम उम्र किसे ढूँढता रहा है तू।
सवाल तुझसे करेगी ये ज़िन्दगी इक दिन।

मोहब्बतों के दिए मैं जला रहा हूँ ‘क़मर’।
ये बात समझेगी नफ़रत की तीरगी इक दिन।

जावेद क़मर फ़ीरोज़ाबादी

1 Like · 212 Views
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