तलाश-गजल कोमल की
तलाश- गजल- कोमल अग्रवाल
पयाम किसका ये शामों सहर सुनाती है
मेरी तलाश तुझी पर ही ठहड़ जाती है ।
बेजूबानी सवाल तुझसे है इतना मेरा
पूछता है तो क्यूँ तू साफ मुकर जाती है ।
तुमसे मुमकिन हो तो अब नाम मेरा मत लेना
शोखियाँ तेरी मुझे रात भर जगाती हैं ।
बेवफाई का हुनर सबको न आया वरना
मर के जीने मे एक उम्र गुजर जाती है ।
राजे दिल उनसे छुपाऊँ तो छुपाऊँ कैसे
मेरे पल पल की खबर अब तो उधर जाती है ।
तेरी चाहत का सबब कुछ भी हो सुन ले लेकिन
धड़कनें मेरी तुझे हमसफर बुलाती हैं ।
इश्क का रंग रबायत से भी गाढ़ा ठहड़ा
एकतरफा हो तो तस्वीर बिगड़ जाती है ।
अब भी जीने का सिफ़ा तुझको न आया कोमल
आईना देखूँ तो कमियाँ ही नजर आती है ।
पयाम किसका ये शामों सहर सुनाती है
मेरी तलाश तुझी पर ही ठहड़ जाती है ।