तलबगार
कब तलक खुश्क रहेंगी आख़िर ये मिरी नज़र |
इस तरफ़ मिरे दिल का माजरा, उस तरफ़ दिल – ए – यार की नज़र ||
दोस्त है तो दोस्ती मे सँभालना भी होता है मुर्शिद |
दोस्तों पर चलाई नहीं जाती इस कदर कातिल नज़र ||
ये आलम – ए – बुत – परस्ती यूँ ही नहीं फ़ैला आजकल फ़ाज़ओ मे |
किसी फनकार ने तस्वीर मे उतार दी वो दिलकश नज़र ||
इक इक साँस के साथ हम ग़म ख्वारा – ए – इश्क़ करे |
मुक्कमल ही नहीं कोई तालीम जो पढ़ ले वो सुरमई नज़र ||
ये हादसा – ए – इश्क़ मिरे साथ होना तय ही था यारों |
मुझ पर जम कर बरस रहीं थीं उसकी दस्तरस्ती नज़र ||
बुलबुलों, तितलियों दो दिन की मौज और सही |
बाग़ पर पड़ गयी है कुछ पेशा – ए – शिकार की नज़र ||
बैचैनी के सुरूर मे अब हम भी शामिल है |
दिल को दिल बना गई उस संग दिल की नज़र ||