तर्पण
तर्पण
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तर्पण की परम्परा
वर्षों पुरानी है,
अपने पुरखों पूर्वजों को
देना होता पानी है।
मगर अब जहाँ
ये परम्परा भी
आधुनिकता की भेंट चढ़ गई है,
वहीं भावनाएं भी
जैसे हमारी मर गई हैं।
जीते जी माँ बाप बुजुर्गों से
दुर्व्यवहार करते हैं,
मारपीट भी बहुत बार करते हैं,
अपने सुख के लिए
अपने बीबी की खुशी की लिए
कथित शान्ति के लिए
माँ बाप को मरने के लिए
छोड़ जाते है।
यही नहीं अब तो
वृद्धावस्था में बुजुर्गों को
वृद्धाश्रम में छोड़ देने का
रिवाज हो रहा है।
उनके मर जाने पर
दहाड़े मारकर प्यार दर्शाने का
वाह्य आडंबरों का रोग हो रहा है।
पितृपक्ष में
तर्पण तो बस बहाना है,
असली मकसद तो बस
दुनियाँ को दिखाना है,
और पूर्वजों का
यह लोक बिगाड़ कर
अपना परलोक सुधारना है।
✍सुधीर श्रीवास्तव