तर्जनी (ग़ज़ल )गीतिका
तर्जनी
मेरी तर्जनी ने जिन्दगी की तर्ज़ सी बिगाड़ दी।
हर कार्य में वो साथ थी मेरे तंग समय की आड़ थी।
करने को मैं जो कुछ भी चलूं ।
वो करती तिल का ताड़ थी।
मेरी तर्जनी ……..
दर्द कई मरतबा खामोशी से मैं सह गयी।
खामोशी में लबों पर मेरे खड़ी रही पहाड़ सी
मेरी तर्जनी………
भिन्न-२ तरन्नुमो में साज सी सजी रही।
चुटकियों में देंती मुझको धीमी -२ ताल थी।
मेरी तर्जनी………
तसव्वुर मेरे ज़हन में उभर के आयें जो कभी।
मेरे सभी तसव्वुरो को करती वो साकार थी।
मेरी तर्जनी………
खूबसूरत तस्वीरें उकेर कर मेरी कभी
जां सी भरकर उनमे उन्हे रंगो से सवांरती।
मेरी तर्जनी………
मेरे नन्हे-मुन्ने प्यारे बालको को
उसकी ही तो थाम थी पकड़ उसकी अथाह थी।
मेरी तर्जनी………
अब नही है तर्जनी और न ही कोई तर्ज़ है।
बिन तर्जनी भी वो -ए-सुधा निभा रही हर फर्ज़ है।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर