तरुण
तरुण वह जो भाल पर लिख दे विजय।
शरम से ऑंखें झुकाता है प्रलय।
जाग, सद्नायक बने औ बना दे।
राष्ट्र-तम पर अरुण-आभा का निलय।
जाग जाएं जन,तभी बलवान बन।
राष्ट्र छूले व्योम विकसित भानु-सम।
धरा तब आनंदमय अति हर्ष है।
प्रेममय दिखता तरुण जब ज्ञान बन।
तरुण जाग जाए स्वराष्ट्र का,तब ही तो सचमुच विकास है।
जन जन के बंधुत्वरूप का उच्चभाल उर का प्रकाश है।
उच्च सजगता का सु वास सह दिव्य प्रेम की सबल साधना,
के बल से ही विश्वभूमि पर, आर्य देश ज्ञानी अकाश है।
पं बृजेश कुमार नायक