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9 Feb 2024 · 1 min read

तरुणाई इस देश की

ले अंगड़ाई जाग उठी है तरुणाई इस देश की,
वसुंधरा पर बच ना सकेगी अब लंका लंकेश की।
घावों का दर्द छिपा कर गाए थे जो प्रणय तराने,
उसी कंठ से फूट पड़े हैं हा!आज प्रलय के गाने।
जलती-सी चिंगारी से उपजी है अब मादक हाला,
जिसको पीकर देश का युवा आज बना है मतवाला।
बाधाऍं इसके मग में अब टिक ना सकेगी लेश भी,
ले अंगड़ाई जाग उठी है तरुणाई इस देश की।
आंखों में उन्माद बसा है बिजली कौंधी नस-नस में,
स्वर में एक हुंकार भरा है अग्नि छाई तन- मन में।
बहुत सहे है बंधन इसने औ’ बहुत सहे है शोले,
धधक रहे है इसके उर में अब प्रतिशोध के गोले।
रोक न सकेंगे इसकी गतिविधि प्रलयंकर महेश भी,
ले अंगड़ाई जाग उठी है तरुणाई इस देश की।
सूरज न ठहर सकेगा इस तेजोमय तेज के आगे,
इसकी गति मात्र से ही आज दिग्दिगन्त तक सब काॅंपे
लोक लाज का भय दिखलाके तुम उसको चले डराने,
यश मर्यादा के चक्रव्यूह में अब उसे चले फॅंसाने।
फाॅंस न सकेंगे आज उसे चाहे आए सर्वेश भी,
ले अंगड़ाई जाग उठी है तरुणाई इस देश की।
उसकी रग-रग से धधकी है अमोघ क्रांति की ज्वाला,
जल जाएगा सारा जिसमें जग का विषधर औ’ काला।
जग आज उसे पाप-पुण्य का यह ज्ञान नहीं बतलाए,
उसको मनचाही करने दे उसकी राह में ना आए।
खुद रच लेगा वह अपने आदर्श औ’ निज परिवेश भी,
ले अंगड़ाई जाग उठी है तरुणाई इस देश की।

—प्रतिभा आर्य
‌ चेतन एनक्लेव,
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
2 Likes · 372 Views
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