तरक्की
तरक्की
बदल गये हमारे तरक्की के मापदंड
हम आ गये हैं बहुत आगे
हो कर उद्दंड
जैसे बाढ़ में बढ़ आती है नदी आगे,
जैसे चक्रवात में छोड़ देता है सागर
अपनी मर्यादा ।
हम अब सब रखने लगे हैं
जरुरत से भी ज्यादा
नहीं रहने देते गरीब के पास
जरुरत से भी आधा
हम नेे तो माना था हर नर में
नारायण है
नारायणों का भी हक मार कर
आगे बड़ने पर हैं अमादा।
सोच लो क्या होता है
जब समुंद्र लांध जाता है मर्यादा।।