तरकीब
मैं लिखतें-लिखतें सो गई
क्षण हसीन पलों में खो गई
वक्त को थोड़ा औंर वक्त देकर
मैं चैन की नींद सो गई ।
काले सायें थे सामने मेरे
पर मैं अपनी दुनियाँ में खो गई।
अजनबियों के बीच में मैं
राह-पलख में खो गई ।
बातों में बातें थोड़ी उलझती गई
मैं चाय की चुस्की में खो गई
दुनियाँ वहीं थी पर मैं अपनी
अनकहीं हँसी में खो गई ।
हर दिन नया सँवेरा, नई रातें
हम रातों तले पाँव दबा कर सो गई ।
डर नहीं लगता अब इन काली रातों
से क्योंकि अब मैं अपनी दुनियाँ
में थोड़ी-सी खो गई ।