तमाशा
सुनते थे जो हर बातों को,करने लगे बहाने अब।
छुप -छुप कर ही देखा करते,आंखें लगे चुराने अब।
हंसते गाते ही रहते थे,खोए- खोए दिखते हैं,
सुनते थे जो हर बातों को,करने लगे बहाने अब।
छोटी -छोटी बातों पर भी, खूब तमाशा करते हैं,
बात -बात पर ऐसे बरसे,डंका लगे बजाने अब।
पैसा- पैसा करते रहते, नशा चढ़ा है पैसों का,
घर का सारा काम छोड़कर,वे भी चले कमाने अब।
चूल्हा -चौका छोड़ दिया है, होटल का खाना अच्छा,
घर का खाना छोड़ -छाड़ कर,थाली लगे बजाने अब।
बातों को सुनकर अब मेरे,सिर को खूब खुजाते हैं,
बातों ही बातों में ‘दीपक’,मुझको लगे घुमाने अब।
डी एन झा दीपक ©