तमन्ना
लिखूं अगर कोई कविता में, तो तुम कलम हो मेरी।
तुम्हारा ही जिक्र है ,हर कविता में मेरी।।
एक तमन्ना है इस जेहन में मेरे। की कभी मेरा भी जिक्र हो जेहन में तेरे।।
तेरे जिक्र में तो हमने लिख डालीं हैं हजारों कविताएं।
पर तूने तो चित् में भी ना डाला है हमें अपने।।
अधूरे से लगते है जिक्र यह तेरे । कुछ तो भुला बैठे हैं हम फिक्र में तेरे।।
तेरे नाम की तमन्ना को पहरे में बैठाया है हमने।
पर तमन्ना तो तमन्ना है पहरे में भी तमन्ना को उठाया है हमने।।
तमन्ना नहीं है यह मेरी, हर ज्रिक में रहूं मैं तेरी।
तमन्ना नहीं है यह मेरी, जेहन में ना रहूं मैं तेरी।।