तमन्ना।
मरना ही जब ।
जीवन का प्रबल सार है ।
फिर क्यूं किसी को होता अंहकार है ।
ये दौलत की गर्मी ।
ये शोहरत के आदी ।
किसी हसीन लड़की से ।
ख्वाब करने की शादी ।
फिर परिवार को सम्भालो ।
सबका पेट पालो ।
इसी मे गुजरती शेष बची जवानी।
काम,क्रोध, मद, लोभ ।
ईर्ष्या सब किया तू ये प्राणी ।
हमसे आगे न कोई बढ जाए ।
इसके लिए वो कुछ भी कर जाए।
स्वार्थ निकालने के लिए किसी की हत्या भी किए ।
और ये मत पूछो कितने जुर्म पाले।
आज के कार्य को ।
सदैव तुम कल पर टाले ।
मेहनत से तुम काम किए नही ।
दूसरो के तुम छिनने लगे निवाले ।
पैसे से तुमने कानून को खरीदा ।
ये पुलिस वाले, दाल में काले ।
निर्दोषो को तुमने किया उनके हवाले ।
पर सबका होगा इंसाफ ।
सुन रूहे जाएंगी कांप ।
उस न्याय की अदालत में ।
कोई न बचेगा ।
जो हैं किया ।
सब दण्ड मिलेगा ।
रिश्वत का रूस्वा ।
वहां न हैं चलता ।
ये बदन पर कपड़े ।
नही हैं रहता ।
फिर जेबो मे पैसे ।
कहां से होगा ।
वहां पर पुण्य की ही गिनती होगी।
केवल ब केवल शांति होगी ।
वहां कोई न सुनेगा ।
तेरे चित्कार को ।
तेरे हाहाकार को ।
माया के वशीभूत ।
होकर सभी तो ।
सुखे मे करते है ।
नमी वो ।
सबको पता है कल ।
तो मरना है ।
पर जब तक न आए ।
बस पाप ही करते रहना है ।
अचानक मौत हैं द्वार पर आती ।
बुझ जाती है तब अंदर कि दीया-बाती ।
जो मरने पर किसी के रोते हैं ।
कल वो भी मरेंगे ।
फिर भी कुछ न सीखते है ।
माया मे ही बस लिप्त रहते है ।
मृत्यु ही जीवन की ।
धनुष की अंतिम टंकार है ।
फिर भी न जाने लोग ।
करते किसका अंहकार है ।
महात्मा बुद्ध की वाणी ।
कबीर के दोहे ।
कुरूक्षेत्र से जन्मी भगवद्गीता की बोली ।
को आत्मसात है जिसने भी किया ।
मुक्ति का द्वार विधाता ने पहले से खोल है रखा ।
वो खुद राम सा बन जाता ।
इंसान से ऊपर का दर्जा पाता ।
विचार,आचार,संस्कार ।
ये तीनो ही नैतिक मूल्य ।
जिसके मूल मे गर सात्विकता आ जाए ।
वही इंसान इस धरा के वसूलो में।
भगवान् बनकर चमक जाता है ।