तब मानूँ मैं
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साहित्य पीडिया काव्य प्रतियोगिता – विषय – ” बरसात ”
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कविता
शीर्षक – “तब मानूँ मैं”
प्राणी के तन की ही नहीं
उठती मन की भी उमस
क्लांत और मलिन
हो पाए शांत शीतल
स्थिर और स्निग्ध
निःसृत तेरी मीठी बूँदों से
बरसे तू रुनझुन
ओ सावन सुन!
तब मानूँ मैं तेरा आना।
गर्भ से ऊर्वी के
हो प्रस्फुटित नव किसलय
जहँ-तहँ इत-उत
अन्न उपजाए सैकत धरा भी
द्रुम दल लचकें बंजर भू पर
गुंफित हो तन्वंगी संग
बरसे तू रुनझुन
ओ सावन सुन!
तब मानूँ मैं तेरा आना।
तृषित नैन
उस धरती पुत्र के
तकते न रहें श्यामल मेघावरि
झर झर बुंदियाँ बरसाओ
हलधर का उर हो अति हर्षित
हल दौडाकर खेतों में
बरसे तू रुनझुन
ओ सावन सुन !
तब मानूँ मैं तेरा आना।
चल जाए
कागज की नाव और
छ्प-छ्प की भी हो गुंजाइश
छुपकर बन्द करने पर नाली
छुटकों का छत पर छक कर नहाना
डांट पर टपकें झूठे वाष्पांबु
बरसे तू रुनझुन
ओ सावन सुन !
तब मानूँ मैं तेरा आना।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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