तब बसंत आ जाता है
जब मौन के बाग में
पक्षियों का कलरव गाता है
जब सूने सूने कानों को
प्रकृति का संगीत लुभाता है
तब बसंत आ जाता है
जब पीले पत्तों के रिक्त में
नया कोंपल मुस्कुराता है
जब खिलता हुआ फूल
उम्मीदें भर इठलाता है
तब बसंत आ जाता है
जब आमों के बौंरों में छुप
अनंग बाण चलाता है
जब बागों का खिलता रंग
नेहों को पास बुलाता है
तब बसंत आ जाता है
जब कमल पाने की खातिर
दरिया का डर न सताता है
जब डूबते हुए मन को
सहारा तिनके का मिल जाता है
तब बसंत आ जाता है