तब पार लगाना सीखेंगे
******* तब पार लगाना सीखेंगे ********
**********************************
फंसे गर मंझदारों में तब पार लगाना सीखेंगे
टकराये अगर अंगारों से आर लगाना सीखेंगे
पानी जितना भी दरिया अंदर चाहे गहरा हो
हाथ पैर हिलाकर समुन्द्र पार लगाना सीखेंगे
जिन्दगी में उलझे कभी अगर हम दोराहे पर
सुलझा के उलझन को हुंकार लगाना सीखेंगे
जो जान से प्यारा अलग थलग रूठा बैठा है
गिले शिकवे भुला के गलहार लगाना सीखेंगे
उपासना शैली में कोई कमी रह गई बाकी हो
नतमस्तक हो मनाने में दरबार लगाना सीखेंगे
खूबसूरती सूरतों से रुसवाईयों से है दूर हुई
सूर्ख पड़े हुए चेहरे पर श्रृंगार लगाना सीखेंगे
मनसीरत मन में मंजिल मंजर की अधूरी सी
सूझवान पथिक बन पथ पार लगाना सीखेंगे
***********************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)