तब और महाभारत होगा।
सुप्रभात मित्रों।
सिंहासन के बगुले जब जब हंसों को ललकारेंगे।
जब जब रावण सिया हरण को भेष जोगिया धारेंगे।
जब जब भरी सभा में पंचाली का चीर हरण होगा।
जब जब दुर्योधन के सँग में खड़ा कोई करण होगा।
झूठों की सत्ता में जब जब सच्चाई वनवास सहेगी।
पतझड़ के मौसम को जब भी भीड़ यहाँ मधुमास कहेगी।
केवल रौब झाड़ना ही जब सत्ता का धंधा होगा।
सिंहासन भी पुत्र मोह में धृतराष्ट्र सा अंधा होगा।
बरबादी के चक्रव्यूह में तब तब अपना भारत होगा।
कोई कितना भी रोको, फिर और महाभारत होगा।।
प्रदीप कुमार