तब और अब
—–तब और अब——
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जब थे हम छोटे बच्चे
होते थे हम मन के सच्चे
अब हम नहीं रहें हैं बच्चे
हो गए हम मन के कच्चे
हसीं थी छोटी सी दुनिया
प्यारी सी रंगीली दुनिया
फैल गई छोटी सी दुनिया
स्वार्थों में अब डूबी दुनिया
नहीं था पाप,अपराध,क्रोध
नहीं था वाद-विवाद,विरोध
अब भर गया वैर,विष,क्रोध
नहीं रहा प्रेम प्यार का शोध
खेलते थे हम बनाकर टोली
खिलोनों से खूब हमजोली
अब खेलते हैं लहू की होली
दिल बनाके खिलौने खाली
सुखविंद्र था बड़ा ही नादान
दुनियावी बर्ताव से अंजान
अब दुनियादारी का है ज्ञान
नहीं रहा अब नादान,अंजान
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)