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26 Jun 2022 · 1 min read

” तपिश ए उल्फ़त ” ( चंद अश’आर )

शीर्षक – ” तपिश ए उल्फ़त ” ( चंद अश’आर )

क्या दूरियाँ-नज़दीकियाँ सब फ़ासले भी हारे हैं ।
उन नशीली आंखों के आगे अब हौसले भी हारे हैं ।।

है बड़ी ताक़त, बड़ी अज़मत उनके इश्क़ में ,
उस तपिश ए उल्फ़त के आगे काफ़िले भी हारे हैं ।।

था मुक़द्दस शबनमी उसकी चाहत का ये रंग ।
अब रहमतों के आगे ये ज़लज़ले भी हारे हैं ।।

ख़ानाबदोश की तरह भटकता रहा ये दिल ।
उन हसीं लबों के आगे ये मरहले भी हारे हैं ।।

उसकी चाहत में था रहना कोई इम्तिहां बड़ा ।
उसके पागलपन के आगे ये दिलजले भी हारे हैं ।।

था नशा नागिन सा उनकी अदाओं में “काज़ी” ।
उनके ज़हर के आगे सब ज़हरीले भी हारे हैं ।।

©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन ,इकबाल कालोनी
इंदौर ,मध्यप्रदेश

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 160 Views
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