नारा पंजाबियत का, बादल का अंदाज़
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
जब कोई रिश्ता निभाती हूँ तो
जानते हो मेरे जीवन की किताब का जैसे प्रथम प्रहर चल रहा हो और
ग़ज़ल/नज़्म : पूरा नहीं लिख रहा कुछ कसर छोड़ रहा हूँ
क्या है उसके संवादों का सार?
समूचे साल में मदमस्त, सबसे मास सावन है (मुक्तक)
नज़र
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
23/164.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जिसका मिज़ाज़ सच में, हर एक से जुदा है,
वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग में राम द्वा
बुलंदियों पर पहुंचाएगा इकदिन मेरा हुनर मुझे,
सीख ना पाए पढ़के उन्हें हम