तन्हा
चुप चुप सा रहता हूँ,
तन्हाई में जीता हूँ,
जिन्दगी बसर हो रही है
यूं ही तन्हा,
फिर भी रात सपनों में
खोया रहता हूँ।
जमाना रूप बदलता रहा
मौसम की तरह,
लेकिन ख्वाबों में
तेरे साथ जिया करता हूँ।
कैसे बयां करूँ
यादों के बादल को,
आँखों के आँगन में
बरसात करता हूँ।
हँसते हुए तुम मिलते हो
गैरों से उधर,
इधर मैं
तन्हाई के आग में जलता हूँ।
लोग पुछतें है कौन हैं वों
जो तेरी ये हालत कर गया,
दिल में तेरा नाम लेकर
मैं सिर्फ मुस्कुरा देता हूँ।
आखिर कैसे खत्म करूं
तुझसे रिश्ता,
जिसे महसूस करने से ही
मैं दुनियां भुल जाता हूँ।
आज फिर तेरी याद आयी
बारिश को देखकर,
दिल पे जोर न रहा
अपनी बेबसी पर रोता हूँ।
मुझे शौंक नहीं अपने जज़्बातों को
सरेआम लिखने का,
मगर क्या करूं…
अब इसी के जरिए
तुझसे बात करता हूँ।
तुम छोड़ गयीं
मुझे यकीन नहीं,
चौखट पर खड़ा
आज भी
तेरा इंतज़ार करता हूँ।
—–अभिषेक द्विवेदी “नीरज”—–