तन्हा सी तितली।
तन्हा सी तितली हूँ ढलते अंधेरों में,
अभी ज़रा वक़्त है हसीन सवेरो में।
डर है हवाओ का कहीं उड़ा न ले जाएं,
उजाले भी नहीं हैं अभी मेरे बसेरो में।
तन्हा सी तितली हूँ ढलते अंधेरों में।
मुझे अभी सुकून नहीं रंगीन नज़ारो में,
भीड़ बहूत है मगर अपना नहीं कोई हज़ारो में।
जुगनू भी तो बस रात का साथी है,
अकेले भी तो डर लगता है इन बहारो में।
तन्हा सी तितली हूँ ढलते अंधेरो में।