तन्हा सफर ज़िन्दगी
रचनाकार,
कवि संजय गुप्ता।
मैं चला था अकेला सफर में,
पहुँच गया एक अनजान शहर में।
कुछ चेहरे नए और अजनबी से,
कुछ प्यारे तो कुछ मतलबी से।।
अजनबियों के बीच में,
ढूंढने लगा मैं किसी अपने को।
सोचा पूरा कर लूंगा शायद,
अपने अधूरे किसी सपने को।।
मगर अच्छाई का मुखोटा पहने,
हर चेहरा मासूम नज़र आया।
भरोसा कर लिया हमने भी आंख मूंद कर,
बदले में दामन फरेब से भरा पाया।।
दुनिया छोड़ने का इरादा किया,
गम का ज़हर घूंट घूंट पिया।
खुशी की तलाश में फिर सफर शुरू किया,
किस्मत ने कभी मंज़िल से दूर रखा,
तो कभी मन्ज़िल के करीब ला दिया।।
रचना- कवि संजय गुप्ता।
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