तन्हा क्रिकेट ग्राउंड में….
तन्हा क्रिकेट ग्राउंड में….
बचपन में हमारे पास बल्ले नहीं होते थे! पर फिर भी क्रिकेट खेलने के लिए बड़ी तादाद में बच्चे मौजूद होते थे! हम मन में बड़ी प्रसन्नता लिए मैदान में पहुंचते थे कि अब खेलने को मिला है! भले ही बल्ले लकड़ी के गांव के बढ़ई द्वारा दोयम दर्जे के बनाए गए हों! पर खेलने में उत्साह इतना ज़्यादा होता था कि हम क्रिकेट में लगने वाले संसाधनों की गुणवत्ता की परवाह ही नहीं करते थे!
आज मैं शाम को बहुत खुश होकर क्रिकेट ग्राउंड में गया कि आज क्रिकेट खेलूंगा! पर वहां का दृश्य देखकर अचंभित हो गया! बच्चे तो हर उम्र के मौजूद थे ग्राउंड में पर मैदान में खेलने वाला कोई नहीं था! सब फोन में गेम खेलने वाले थे! जब मैं बल्लेबाजी करना चाहा तो एक भी बच्चा उठकर गेंदबाजी कराने नहीं आया! सब फोन में ही लगे रहे! ये देखकर मैं बहुत व्यथित हुआ! ऐसी स्थिति शायद आज हर जगह हो गई है! और जब ओलंपिक्स और क्रिकेट वर्ल्ड कप में कप उठाने की बात आती है तो भारत शायद इन सभी कारणों के वजह से ही पीछे रह जाता है!