“तन्हाईं”
मुझको तन्हा नहीं ,रहने देती है मेरी तन्हाईं।
आशिया खाली है फिर भी, बातें करती हैं मेरी परछाईं
चोट का एहसास नहीं ,मुझको कोई प्यास नहीं।
खोने का गम नहीं, पाने का एहसास नहीं।
आंसू अब गिरते नहीं ,पलकों का साया नहीं।
खुशियां हैं, पर उसमें कोई शामिल नहीं।
बंद कमरे में ,देखो रोशनी दौड़ी आईं।
मुझको तन्हा नहीं रहने देती हैं मेरी तन्हाईं।
आशिया खाली है फिर भी बातें करती है मेरी परछाईं।
दर और दीवार नहीं ,कोई फरियाद नहीं।
कभी मैं भूला नहीं ,मुझको कुछ याद नहीं।
सुर और साज नहीं, राग भी कुछ खास नहीं।
जिंदगी है, पर जिंदा रहने का एहसास नहीं।
झूठी ही सही ,पर मैंने कसम है खाईं
मुझको तन्हा नहीं, रहने देती हैं मेरी तन्हाईं।
आशिया खाली है फिर भी, बातें करती है मेरी परछाईं