तनि धीर धरो
दुख के दिन बीत अतीत भयो
मनमीत न नैनन नीर भरो
रचना रच दो नव जीवन की
दुखते हिय की कुछ पीर हरो
मन की दुविधा घटने तक तो
सिय पाँव न पार लकीर करो
रघुनाथ अनाथन नाथ सदा
करिहैं किरपा तनि धीर धरो