तकदीर का सैलाब
गिला तुमसे नहीं तकदीर से है
जो खुशियां तो लाती है,
पर ग़मो के सैलाब के साथ
जिसमे डूबते उतलाते रहते हैं मेरे ख़्याल
ये सैलाब हर चीज़ को अपने बस में कर लेता है
वो दरख़्त जिसके साये में तेरी गोद में सोया था
वो गुलाब का पौधा जिसका फूल तेरी ज़ुल्फ़ में पिरोया था
वो ख़त जो लिखा था तुम्हें तन्हाई में
वो तस्वीर जो बनाई थी तुम्हे बिन देखे
वो ग़ज़ल जो लिखी थी तुम्हें बिन देखे
ये मेरा ख़्वाब है जिसमे एक ज़िन्दगी जी है मैंने
सब कुछ नस्तो नाबूद हो गया, सब अपने साथ ले गया ये सैलाब
और छोड़ गया कुछ ज़ख्म इस उजड़े माकन में