तंत्री छंद (बेलगाम सपने)
#विधा ? तंत्री छंद
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…रचना…
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बेलगाम है, सपने अपने,
कस लगाम, अब मिलना क्या है ?
बेलगाम ही, चलते जाना,
ख्वाब बिना, फिर झिलना क्या है ?
खुले नयन में, स्वप्न पलेंगे,
जीवन मे, अब रुकना क्या है?
कठिन मार्ग या, विकट परिस्थिति,
अचल रहो, मनु झुकना क्या है?
सच को जानो, खुद को मानो,
स्वप्न बिना, यह जीवन क्या है?
चढ़ो शैल पर, रुके नहीं पग,
जय सम्मुख, कण्टक वन क्या है?
स्वप्न सुनहरे, खुली आँख के,
पूर्ण करो, अब सोना क्या है ?
सोच नहीं अब, कठिन यहाँ कुछ,
सपने हैं, तो रोना क्या है ?
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✍ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
पूर्णतः स्वरचित व स्वप्रमाणित