*ढ* और *ढ़* का अंतर व्हाट्सएप समूह पर सीखा
#ढ_और_ढ़_का_अंतर #संस्मरण #डॉ_श्याम_सनेही_लाल_शर्मा #रवि_प्रकाश #Ravi_Prakash
संस्मरण
???????
ढ और ढ़ का अंतर व्हाट्सएप समूह पर सीखा
????????
मुझे ढ और ढ़ का अंतर उच्चारण की दृष्टि से तो हमेशा से ज्ञात था लेकिन लिखने में गलती मैं यह करता रहा कि दोनों ही अक्षरों के नीचे बिंदी लगा देता था । यह भूल 58 – 59 साल की उम्र तक चलती रही।
जब मैं डॉ राकेश सक्सेना (एटा) के तूलिका बहुविधा मंच व्हाट्सएप समूह का सदस्य बना तब डॉ. श्याम सनेही लाल शर्मा जी (तत्कालीन प्राध्यापक ,हिंदी विभाग, कुसुमबाई जैन कन्या महाविद्यालय ,भिंड, मध्य प्रदेश ) ने मेरे किसी गीत अथवा गीतिका की समीक्षा करते हुए इस दोष को पकड़ा ,इंगित किया तथा मेरा ध्यान इस ओर गया । मैंने तत्काल उनसे पूछा ” इन दोनों में किस प्रकार अंतर करें ?”
उन्होंने लिखा “बस इतना समझ लीजिए कि शब्द के शुरुआत में नीचे बिंदी नहीं लगती है ।”
अब इस फार्मूले की मैंने मन ही मन बहुत से शब्दों के उच्चारण के साथ जाँच- पड़ताल करना आरंभ किया और अपनी भूल मेरी समझ में आ गई । बिना बिंदी वाले बहुत से शब्द थे :- ढक्कन ,ढिबरी ,ढकना आदि आदि । मैंने सुधार कर लिया। हालाँकि अभी भी 58 – 59 साल की आदत आसानी से नहीं जाती । जब भी गलत स्थान पर नीचे बिंदी लगाता हूँ ,तो डॉक्टर श्याम सनेही लाल शर्मा जी का स्मरण हो आता है और मैं नीचे बिंदी नहीं लगाता ।
उपरोक्त घटना चक्र के उपरांत मैं एक बार व्हाट्सएप समूह में सदस्यों द्वारा लिखित कुंडलियों की समीक्षा कर रहा था। एक विद्वान महोदय ने ढूँढे का तुकांत बूढ़े से जोड़ दिया । अगर पहले की बात होती तब तो मैं शायद अनदेखा कर देता ,लेकिन अब क्योंकि मुझे ढ और ढ़ का अंतर भली-भाँति ज्ञात हो चुका था ,अतः मैंने इस तुकांत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। विद्वान महोदय ने अपनी भूल को स्वीकार किया ।
मेरे हिंदी शिक्षक हमेशा से विद्यालय में बहुत योग्य रहे ,लेकिन न मालूम कैसे मैं इस मामले में अधूरा रह गया ।
कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति जीवन भर सीखता रहता है और उसे सीखना भी चाहिए । कभी भी अपने आप को संपूर्ण समझ कर सीखने की प्रक्रिया बंद नहीं करनी चाहिए ।
?????????
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451