ढूंढ़ता हूँ उसे
मैं अपने अंदर झांकता हूँ और देखता हूँ तुझे ,
तू वही है, जो उसके अंदर से देखता है मुझे ।।
तुझसे बात करता हूँ अकेले में, कोई सुन ना ले ।
सुनता वो भी है, जिसके अंदर रहता तू ही है।।
मैंने फुसफुसाया कानों में उसके, मेरी बात आसमाँ तक गयी ।
मुझे लगा मैं अकेला था, मग़र उसकी नज़र हजारों पर गयी ।।
मैंने कपड़े गहने और इत्र लगाकर उसका इंतज़ार किया।
मग़र वो मुझे फ़कीर के हुजरे में ज़्यादा खुशहाल मिला।।
मैं उसे बुलाता रहा मंदिर मस्ज़िद मजारों से आवाज़ लगा लगा कर।
मग़र मुझे वो मोहब्बत की गलियों में चैन से सोता हुआ मिला ।।
मेरे नज़दीक आया वो, मेरा हमसफ़र साया बनकर ।
मग़र उसको मेरी रुह में, कुछ अटपटा पराया सा लगा ।।
मैंने क्या खता की थी, वो रुक ना सका पल भर साथ मेरे ।
मेरी इबादात में उसको, कुछ दिखावा सा ज्यादा लगा ।।