ढ़ूंढ़ रहे जग में कमी
ढ़ूंढ़ रहे जग में कमी, पहले खुद को आंक।
इधर उधर क्यों झांकते, अपने अंदर झांक ।
दिल में है कचरा भरा, सड़ा हुआ मस्तिष्क-
खुद की लुंगी है फटी, उसको पहले टांक।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
ढ़ूंढ़ रहे जग में कमी, पहले खुद को आंक।
इधर उधर क्यों झांकते, अपने अंदर झांक ।
दिल में है कचरा भरा, सड़ा हुआ मस्तिष्क-
खुद की लुंगी है फटी, उसको पहले टांक।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली