ढंग तुममे कछु दीन के नईआ, खटिया पे तुम पड़े रहो
ढंग तुममे कछु दीन के नईआ, खटिया पे तुम पड़े रहो
अब करबे मे काय कुका रये मुँह लटका के खड़े रहो
बा दिन काय शरम ने खाई जब मे नई नई आई थी
दाऊ के घर से बोरा भर के सोनो चाँदी लाई थी
अब काय भेजाखो चीथो एगर खां तुम खड़े रहो
दारू पी के कुटत फिरत हो, कुंडो मे तुम पड़े रहो
नये नये मे मेरी “कृष्णा”जी करते बहुत बड़ाई थे
सास ससुर से मेरे पीछे करते रोज लड़ाई थे
रोज पुरा मे अब घूमत तुम कलिया के घर अड़े रहो
जातन वातन काय होत हो एक कना तुम पड़े रहो
✍कृष्णकान्त गुर्जर धनौरा