डूबे हैं सर से पांव तक
डूबे हैं सर से पांव तक,ता उम्र भ़ष्टाचार में
लगा रहे हैं दांव पर, इज्जत को शिष्टाचार में
मामले संगीन कई,इन पर विचाराधीन हैं
शर्म भी शरमा जाए,नि: बस्त्र और रंगीन हैं
अपराध ही है कर्म इनका,न कोई धर्म या कि दीन है
शर्म भी शरमा जाए,नि: बस्त्र और रंगीन हैं
झूठ कपट कुटिल भूषण, और हृदय से हीन हैं
चुन लिए हमने देश में,जो हर तरफ से हीन हैं