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29 Nov 2017 · 1 min read

डिजिटल इंडिया का बाबू- – –

मुझे हैरानी हुई!और तनिक अफ़सोस भी।
जब
पोस्ट आॅफिस का तरुण बाबू
पाॅलीथीन की गाँठ न खोल पाया
जिसमें कुछ चिल्लर रखी थी
दो-तीन दफा उसने उठकर
सारा आॅफिस छान मारा
मुझे लगा कोई डिजीटल औजार होगा
या फिर डिजीटल पद्धति खोलने की
मगर जनाब ने
अपने समय का पूरा सद्पयोग किया—
और मुझे अपनी घडी़ देखकर
अपने कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व पर
खीझ हो रही थी- – –
भाईसाब ने इतनी मसक्कत के बाद
फटाक से उसे ब्लेड से काट दिया
ऐसा लगा जैसे मेरे बगल से बुलेट ट्रेन गुजर गई।
गतिमान भारत की रेलगाडी़
ऐसे पहिये के सहारे कब तक दिल्ली पहुँच पायेगी!

Language: Hindi
7 Likes · 808 Views

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