डायरी भर गई
लो डायरी फिर भर गई,
या कहूँ हार गई।
बेहिसाब यादों का,
हिसाब करते करते।
मैंने दिल की ओर देखा डरते डरते।
रख लोगे?
किसी कोने में चंद यादें,
किसी दराज में चंद बातें।
वो कह उठा लाचार सा,
जहाँ तहाँ बेतरतीब रखी हैं,
बेहिसाब रखी हैं,
कोने कोने में जनाब रखी हैं।
दराज तो क्या,
दरारों में भी किस्से छुपे हैं।
छोटी बड़ी हर कील पर वादें टँगे हैं।
कुछ यादें कोनों में जालों सी अटकी हैं,
कुछ बंदनवार के साथ लटकी हैं।
पुरानी यादें ज़िद्दी बुजुर्गों सी,
टस से मस नही हो रही हैं,
और नई दरवाजा पीट पीट,
चौखट पर ही सो रही हैं।
बामुश्किल साँस ले पा रहा हूँ,
इन्हें सम्भालते घिसा जा रहा हूँ।
मैने कहा थोड़ी और जगह बनाओ,
ज़रा अपना दायरा बढ़ाओ।
दिल बोला यार,
तुम डायरी ही ले आओ,
भर गई खरीद तो भी लोगे,
मै भर आया तो सोचो क्या करोगे ??