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15 May 2024 · 1 min read

डर

डर एक मात्र शब्द नही है
बल्कि एक अनुभूति है
जो विशालकाय शरीर को
कंपा देती है एक बार।।

डर जब बैठ जाता है ना
श्रेष्ठ भी गौण हो जाता है
धीरे धीरे टूट कर बिखरना
कांच सा फूटता है आदमी।।

जब अपने से टूटता है आदमी
तब पीड़ा भी कराह उठती है
दर्द को भी दर्द होने लगता है
पर्वत सा कोई रोने लगता है।।

हालात जब बिगड़ जाते है
रिश्ते नाते सब सिमट जाते है।
हाथ मदद का छुड़ाने लगते है।
दूर से ही मुस्कराने लगते है।।

Language: Hindi
58 Views

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