डर
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डर
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भीषण युद्ध छिड़ा धरती पर, जन-धन व्यर्थ गँवाया है ।
फिर भी नहीं सोचते किंचित, क्या खोया क्या पाया है ।।
बम्ब अगर परमाणु चला तो, कैसा दृश्य दिखायेगा ।
करूँ कल्पना उस विनाश की, मन मेरा दहलाया है ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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🪷🪷🪷