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13 Oct 2024 · 1 min read

डर डर जीना बंद परिंदे..!

डर डर जीना बंद परिंदे।
कर आवाज़ बुलंद परिंदे।

कांटों की संगत में रहकर,
गुल बनता गुलकंद परिंदे।

जंग यहाँ ख़ुद से ही लड़नी,
कस ले बख्तरबंद परिंदे।

भवरों से रंजिश फूलों की,
चूस लिया मकरंद परिंदे..!

मात पिता के क़दमों में ही,
मिलता है आनंद परिंदे।

मसले सारे सुलझेंगे अब,
नोट रखो बस चंद परिंदे।

झूठ फ़रेब व दहशतगर्दी,
साफ करो ये गंद परिंदे।

गाओगे रातों में तन्हा,
गीत ग़ज़ल ये छंद परिंदे।

वो अल्फ़ाज़ों का जादूगर,
क्या है बोल पसंद परिंदे।

पंकज शर्मा “परिंदा”

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